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Monthly Archives: November 2019

दरवज्जा

घर का दरवाज़ा खुला था
पर तुम आये नहीं
खटखटाया खिड़की हवा की ज़ोर से
हज़ारों बार
मैं सौ मिन्नतें करती रही
तुम्हारी एक आवाज़ का दस्तक पर

काफी इंतज़ार के बाद
जब मैं मन्न का दरवज्जा बंद की
कोई आया घर के बाहर
शकल न दिखी पर
वो काली टोपी और लाल गुलाब
भूले हुए पलों का याद दिलाया

खोली नहीं दरवज्जा
छोड़कर मेरी लज्जा
खिड़की के सलाखों की
बीच से देखा तो ऐसा लगा
वो ठहरे सलाखों के पीछे
मेरे इंतज़ार में
और मै आज आज़ाद हुयी
प्यार के पिंजरे से नील गगन में !

 
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Posted by on November 3, 2019 in RandomActOfWriting - Hindi